
हरियाणा के गुरुग्राम में टेनिस स्टेट चैंपियन राधिका यादव की पिता के हाथों हुई हत्या ने सिर्फ एक लड़की की जान नहीं ली, बल्कि समाज के दोगले सोच को भी बेनकाब कर दिया।
गुस्ताखी माफ़! लेकिन- भोले हैं, पर बेवकूफ नहीं! शिव को ऐसे नहीं पटाओगे
दीपक यादव नाम के एक पिता ने अपनी ही बेटी को इसलिए गोली मार दी, क्योंकि…
-
लोग “बेटी की कमाई खा रहा है” ताने मारते थे।
-
बेटी इंस्टाग्राम पर रील्स बनाती थी।
-
और सबसे बड़ा अपराध – वह अपनी मर्ज़ी से जी रही थी।
कमाई करती बेटी = आहत होती मर्दानगी?
दीपक यादव ने खुद कबूल किया कि उसे बुरा लगता था जब लोग कहते थे कि वो बेटी की कमाई खा रहा है।
सवाल ये है:
कमाई करने वाली बेटी घर के लिए गर्व होनी चाहिए या बाप की शर्म?
कहीं ऐसा तो नहीं कि “बेटा कमाए तो शेर, बेटी कमाए तो ताने?”
Instagram रील्स = संस्कारों की कब्र?
राधिका इंस्टा पर रील्स बनाती थी।
यानी अब इंस्टाग्राम पर रील्स बनाना भी लाइसेंस फॉर शूटिंग हो गया है?
क्या सच में समाज इतना रील-संवेदनशील हो गया है कि डिजिटल आज़ादी पर भी गोली चलाई जा सकती है?
समाज का गणित: बेटी + सफलता – नियंत्रण = खतरा!
राधिका ने टेनिस में स्टेट और इंटरनेशनल लेवल पर भारत का नाम रोशन किया।
-
AITA रैंकिंग में टॉप-75
-
ITF में ग्लोबल रैंकिंग
-
ट्यूनीशिया में W15 टूर्नामेंट की खिलाड़ी
लेकिन घर के भीतर, उसकी उपलब्धियाँ “मर्द-मानसिकता” के खिलाफ जा रही थीं। क्योंकि बेटी जब अपनी मर्ज़ी से जीने लगे, तो कुछ घरों में ये ‘विद्रोह’ कहलाता है।
और मां? वो बस चुप थी…
राधिका की मां ने पुलिस को कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। क्योंकि हमारे समाज में अक्सर “चुप रहना ही सहना” होता है।
अब असली सवाल ये हैं:
-
क्या एक बेटी की आज़ादी बाप की ईगो से बड़ी नहीं हो सकती?
-
क्या सोशल मीडिया पर एक्टिव होना अब “मॉरल अपराध” बन चुका है?
-
क्या बेटियों की सफलता का जवाब अब भी “गोलियों से” दिया जाएगा?
अगली रील किसकी हो… कोई नहीं जानता।
“बेटी पढ़ेगी, बढ़ेगी, कमाएगी… लेकिन अगर वह बाप की सोच से तेज निकली, तो शायद गोली खाएगी?”
अब आप बताइए…
क्या बेटी की कमाई और सोशल मीडिया एक्सप्रेशन किसी की जान लेने का कारण हो सकते हैं?
कमेंट करें और शेयर करें ताकि “बेटी बचाओ” नारा सिर्फ दीवारों पर न रह जाए।
टेनिस चैंपियन की मौत! तानों और इंस्टाग्राम से गुस्साए पिता ने ली जान